सोमवार, 27 सितंबर 2010

पत्रकारों का आवा- जाही

रमन प्रिंट में
हिन्दुस्तान से प्रताड़ित होने वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया का यह कैमरा मेन इन दिनों हरिभूमि का फोटोग्राफर बन गया है। अब वह इलेक्ट्रानिक मीडिया से यादा खुश है।
रामकुमार की जनसत्ता से छुट्टी
भास्कर को अपना ईमान समझने के बाद भी जब वहां से हटाए गए तो रामकुमार परमार ने जनसत्ता का रुख किया अब वे वहां से भी चले गए। कहां जाना है अभी तय नहीं है।

रविवार, 26 सितंबर 2010

जितना पैसा, उतना काम पत्रकारिता का काम तमाम

छत्तीसगढ़ में अखबारों का जितना व्यवसायीकरण हुआ है उससे यादा पत्रकारिता और पत्रकारों का व्यवसायीकरण हुआ है खबरें इंच सेमी में बेचने में तो प्रतिष्ठत माने जाने वाले अखबार भी पीछे नहीं है। चुनाव लड़ने वाले राजनैतिक दल के प्रत्याशियों से पैकेज लेने की तो जैसे परम्परा ही चल पड़ी है। ऐसे में पत्रकारिता करने वाले भी कहां पीछे हटते। रोज छपने वाले अखबारों के पत्रकार तो जितना पैसा उतना काम की रणनीति ही नहीं अख्तियार किये हैं बल्कि अलग अलग बीटों में बंट गये है। हालत यह है कि अपनी बीट को छोड़ दूसरे के बीट की तरफ कोई देखता भी नहीं है चाहे कितनी भी बड़ी खबर हो। पिछले दिनों पंडरी के एक दंपत्ति अपने पुत्र की हत्या की आशंका जताते हुए प्रेस क्लब पहुंचे यहां नवभारत भास्कर सहित कई अखबारों के प्रतिनिधि मौजूद थे। ये सब प्रेस कांफ्रेस अटेंड करने आये थे। प्राय सभी का यही जवाब था। पुलिस दूसरा देखता है। प्रेस आ जाना। यानी इस दंपत्ति की बात सुननी तो दूर विज्ञप्ति तक कोई लेने तैयार नहीं था।
यह पत्रकारिता की भयंकर भूल हो सकती है आरै भटकते लोगों के साथ ये अन्याय नहीं तो और क्या है जबकि आज भी आम लोगों की पत्रकारिता से बेहद उम्मीद है।
देहाड़ी मजदूरी भी शुरू
 वैसे तो भास्कर के नित नये प्रयोग किसी से छिपे नहीं है। प्रयोगवादी इस अखबार ने अपने को स्थापित करने आये दिन कुछ नया करने रहता है। इस बार उसने अपने स्टार में देहाड़ी मजदूर की परम्परा शुरू की है। महिने का तनख्वाह वाला सिस्टम खतम। सप्ताह का झंझट भी कौन पाले। इसलिए रोज जाओ काम करो पैसा पाओ। अब काम करने वाला ज्ञान हो या ...क्या फर्क पड़ता है।
डर का भूत
पिछले दिनों संजय पाठक की भास्कर में वापसी हुई। इससे पहले वह भास्कर छोड़कर हरिभूमि गया था। कहते हैं भास्कर छोड़ते की वजह नवीन थे और नवीन हरिभूमि पहुंचा तो वह हरिभूमि छोड़ दिया। प्रेस क्लब में इसकी बेहद चर्चा है और नवभारत के पत्रकारों के मुताबिक नवीन तो अब राव की भूमिका में हैं।

हड़ताल नहीं करने का फल भुगतो
अखबार लाईन में एक कहावत है तनख्वाह बढानी हो तो अखबार जल्दी बदलों। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि हड़ताल में शामिल नहीं होने पर नौकरी से निकाल दे और हड़ताल करने वालों की नौकरी बरकरार रहे। यह सब हुआ है हिन्दूस्तान में यही सब हुआ। पिछले माह हड़ताल हुई तो कुछ लोग काम करते रहे और जब मामला सुलझा हड़ताल खतम हुआ तो उसके सप्ताह भर बाद हड़ताल नहीं करने वाले चैनल से भगा दिये गए। यानी नौकरी तो गई ही साथियों के साथ गद्दारी का तोहमत अलग लगा।
और ..में ....
पूरे प्रेस को व्यवसायिकता के रंग में रगने वाले एक अखबार मालिक को अब कांग्रेस की राजनीति भारी पड़ सकती है। कभी इस अखबार मालिक की जी हुजुरी करने वाले संवाद के अधिकारी अब प्रेस के अवैध निर्माण को तुड़वाने ऐसे बंदे की तलाश कर रहे हैं जो कोर्ट में याचिका दायर कर सके और सेट भी न हो।

शनिवार, 25 सितंबर 2010

फिर वेतन बढ़ने का मौसम आया...

http://www.kaushal-1.blogspot.com/

वैसे तो सरकारी विज्ञापन से ही नहीं सेटिंग करके जमीन से लेकर खदान लेने वाले अखबार मालिक अपने पत्रकारों व दूसरे मीडिया कर्मियों को फूटी कौड़ी देना पसंद नहीं करते लेकिन जब भी नए ग्रुप की आमद होती है वे भीतर तक डर जाते हैं। इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी में यही सब कुछ हो रहा है। पत्रिका, राज एक्सप्रेस सहित कई नए अखबार के आमद ने प्रतिष्ठित अखबारों को भीतर तक हिला दिया है। तोड़फोड़ से भयभीत अखबार मालिक अब पत्रकारों की खुशामद में लग गए हैं। दैनिक भास्कर को पत्रिका से सर्वाधिक खतरा महसूस होने लगा है इसलिए उसने अपने यहां के पत्रकारों ही नहीं अन्य कर्मचारियों का वेतन बढ़ा दिया है। बावजूद टूटन जारी है।
भास्कर के मार्केटिंग वाले पत्रिका पहुंचे...
दैनिक भास्कर ने अपने कर्मचारियों का वेतन तो बढ़ा दिया है लेकिन लगता है पत्रिका को चैन नहीं है वह भास्कर से दुश्मनी भुनाने में लगा है। सर्कुलेशन, संपादकीय व विज्ञापन विभाग में तोड़फोड़ के बाद उसे मार्केटिंग में भी तोड़फोड़ में सफलता मिल गई है। भास्कर के मार्केटिंग के सौरभ श्रीवास्तव, आदर्श पाठक, देवेश नगड़िया और आदित्य पत्रिका पहुंच गए हैं।
मनोज हरिभूमि छोड़ नई दुनिया में...
हरिभूमि का फोटो ग्राफर मनोज साहू को नई दुनिया रास आने लगा है। नई दुनिया यादा वेतन देकर मनोज को अपने यहां बुला लिया। कहा जा रहा है कि हरिभूमि में वैसे भी मनोज परेशान था।
भाई खुश हुआ...
वैसे तो इन भाई फोटो ग्राफरों का सभी मजाक उड़ाते है। अच्छी तस्वीरें खींचने के बावजूद उन्हें अब तक तवाों नहीं मिल रही थी। वेतन की कमी अलग रही ऐसे में पत्रिका में जोर लगाना ही था और वे सफल भी हो गए। अब इन्हें झमरु-डमरु कहो या त्रिलोचन-हीरा मानिकपुरी कह लो। दिन तो बहुर ही गए।
वाह पाण्डे जी
हरिभूमि में क्राईम-क्राईम खेलने वाले सतीश पाण्डे ने ऊंची-छलांग लगा ली है। पहले हल्ला मचाया कि पत्रिका में जा रहा हूं पहले ही दहशत में रहे हिमांशु ने उसकी तनख्वाह तीन हजार बढ़ा दी। अभियान सफल रहा।
इलेक्ट्रानिक में दारू वालों की आमद...
लंबी खामोशी के बाद एक फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया में हलचल होने लगी है। जी-24 के गिरते ग्राफ ने इसके मालिक को एम चैनल में पार्टनरशिप लेने मजबूर किया तो मंजित अमोलक जैसे दारु वाले इस व्यवसाय में कदम रखने लगे हैं। भास्कर का क्या वह तो 51 प्रतिशत में स्वयं है बाकी 49 में कोई भी खेल।
और अंत में...
जब से जनसंपर्क का कार्यभार अमन सिंह ने संभाला है तभी से संवाद व जनसंपर्क के भ्रष्ट अधिकारी सक्रिय हो गए हैं। वे आपस में यही चर्चा कर रहे हैं कि कैसे साहब को अपनी करनी छुपायें और खुश करने कौन सा गिफ्ट दें।